Monday, November 8, 2010

सावधान

 एक नेताजी के
मकान के गेट पर लिखा था 
'कुत्तो से सावधान'
मै  घबराया,थोडा बुदबुदाया
और डरते हुए कल बेल बजाय
तभी कुत्ता गुर्राया-कौन ?
मै  फिर भरमाया,थोडा फिर बुदबुदाया
क्या जमाना आ गया है
कुत्ता भी आदमी की
शकल पा गया है
तभी आत्मा की आवाज आई
अरे नहीं भाई 
अब तो आदमी ही
कुत्ता जैसा हो गया है
देखते नहीं 
कैसे देश को नोच कर
खा गया है

Sunday, November 7, 2010

माँ!........तुम रोना नहीं..

माँ!............
नहीं !नहीं!............
दर्द तुम्हे नहीं!
दर्द तो होता है
उस सोंधी  मिटटी को
जो  समय के गर्भ में
देती रहती है
जन्म
कभी यीशु
कभी नानक
और
कभी राम को !
हत्या !
हत्या तुम्हारी  नहीं माँ !
हत्या तो होती है,
उसके अपने  ही
अज्ञानता भरे
वजूद की !
जो तुम्हारे स्नेह  छाया की
ओट में रह कर भी
नहीं सीख पाया है
पाठ मनुजता  का
माँ!
तुम तो हो ,
उदार चेता,
सत्य की परिधि ,
कामधेनु,
कोई तुम्हारा पयपान कर
विषधर बन  जाये
तो क्या ?
तुम नहीं
बन सकती
पूतना
माँ !
तुम्हे तो आता है
पल-प्रतिपल त्यागना
और तिल तिल कर जलना
नहीं माँ !नहीं!
तुम रोओ नहीं
पोछते आये हैं
कुछ वीर
तुम्हारे इन अश्रुओं को
दिनोदिन महकेगा !
अवश्य महकेगा
एक  दिन मेरे सपनो का भारत
जब जान जायेगा
मनुष्य तुम्हारे
इन अश्रुओं का रहस्य
नहीं माँ !नहीं!
तुम रोना नहीं!
                                                                                        -Vijay Pandey


उपरोक्त कविता विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित  है
1.लोक  कल्याण परिषद् ,देल्ही 1998
2.आचार्य विनय मोहन शर्मा स्मृति  पुरस्कार ,1996
३.Rotomac Letter To Mother India Award.
                                                                               

Saturday, November 6, 2010

सीख

स्कूल से लौटे बच्चे को
माँ ने लताड़ा
गुस्से में थप्पड़ भी मारा
बार बार सुने दे रही थी
उनकी चीख
शायद
वो बच्चे को दे रही थी सीख
अरे कितना नालायक है तू
खानदान की इज्ज़त मिटाता है
स्कूल से कॉपी और कलम चुराता है
इसकी ज़रूरत थी
तो पापा से बता गया होता
यह सब तो ऑफिस से ही आ गया होता
                                                       -विजय पाण्डेय