नहीं !नहीं!............
दर्द तुम्हे नहीं!
दर्द तो होता है
उस सोंधी मिटटी को
जो समय के गर्भ में
देती रहती है
जन्म
कभी यीशु
कभी नानक
और
कभी राम को !
हत्या !
हत्या तुम्हारी नहीं माँ !
हत्या तो होती है,
उसके अपने ही
अज्ञानता भरे
वजूद की !
जो तुम्हारे स्नेह छाया की
ओट में रह कर भी
नहीं सीख पाया है
पाठ मनुजता का
माँ!
तुम तो हो ,
उदार चेता,
सत्य की परिधि ,
कामधेनु,
कोई तुम्हारा पयपान कर
विषधर बन जाये
तो क्या ?
तुम नहीं
बन सकती
पूतना
माँ !
तुम्हे तो आता है
पल-प्रतिपल त्यागना
और तिल तिल कर जलना
नहीं माँ !नहीं!
तुम रोओ नहीं
पोछते आये हैं
कुछ वीर
तुम्हारे इन अश्रुओं को
दिनोदिन महकेगा !
अवश्य महकेगा
एक दिन मेरे सपनो का भारत
जब जान जायेगा
मनुष्य तुम्हारे
इन अश्रुओं का रहस्य
नहीं माँ !नहीं!
तुम रोना नहीं!
-Vijay Pandey
उपरोक्त कविता विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित है
1.लोक कल्याण परिषद् ,देल्ही 1998
2.आचार्य विनय मोहन शर्मा स्मृति पुरस्कार ,1996
३.Rotomac Letter To Mother India Award.
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